लाइब्रेरी में लिपटी तन्वी की गर्मी

मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में B.A. सेकंड ईयर का स्टूडेंट हूँ। हमारे कॉलेज की एक लड़की थी — तन्वी। लंबी, गोरी, स्लिम फिगर, और इतने प्यारे होंठ कि पहली बार देख कर ही मन किया कि उसे चूम लूं।

तन्वी मेरी क्लासमेट थी, लेकिन असली नज़दीकी तब शुरू हुई जब हमें एक लाइब्रेरी प्रोजेक्ट में साथ काम करने को मिला।

एक दिन हम लाइब्रेरी के कोने वाली सेक्शन में बैठे हुए कुछ किताबें देख रहे थे। चारों तरफ शांति थी, बस हम दोनों की धीमी बातें और हलकी हँसी।

“विक्की, ये किताब तो बड़ी बोरिंग है,” तन्वी बोली।
“तो चलो कुछ एक्साइटिंग करते हैं,” मैंने मुस्कराते हुए कहा।

वो मुस्कराई, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी। मैंने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और उसकी हथेली सहलाने लगा। उसने मुझसे नज़रें नहीं हटाईं।

मैंने धीरे से उसके चेहरे को छुआ और फिर उसके होंठों को… वो एक पल के लिए झिझकी, लेकिन फिर उसने आँखें बंद कर लीं।

हमारे होंठ अब एक-दूसरे में उलझ चुके थे।
तन्वी के होंठ मीठे थे, जैसे गुलाब की पंखुड़ी।

मैंने उसके बालों में हाथ डाला और वो मेरे सीने से लग गई।

अब मैंने उसका हाथ पकड़कर अपनी जांघ पर रख दिया।
मेरा लंड पहले से ही खड़ा था और उसने भी महसूस कर लिया।

“विक्की… तुम तो बहुत naughty निकले…”

मैंने उसे पीछे की ओर लाइब्रेरी की खाली बेंच पर लिटा दिया और उसका टॉप धीरे से ऊपर सरकाया। उसके ब्रा के अंदर से उसके निप्पल मुझे चिढ़ा रहे थे।

मैंने ब्रा हटा कर उसके निप्पल को चूसना शुरू किया —
“आह… विक्की… पागल कर रहे हो…”

उसकी कमर मचलने लगी थी, और मेरा लंड अब और कंट्रोल में नहीं था। मैंने उसके स्कर्ट को ऊपर खींचा और उसकी पैंटी उतार दी।

उसकी चूत एकदम गुलाबी थी और पहले से ही भीगी हुई थी।

मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत चाटनी शुरू की —
“उफ्फ्फ… हां… वहीं… ओह विक्की…!”

उसके होंठ, उसकी चूत, सब कुछ अब मेरे काबू में था।
मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डाली और साथ में जीभ भी चलाता रहा।

तन्वी अब पूरी तरह बह चुकी थी।
“अब अंदर डालो ना…” उसने कराहते हुए कहा।

मैंने अपना लंड निकाला और एक ही झटके में उसकी भीगी चूत में डाल दिया।

“आआह… विक्की… क्या जोर का था…”

अब मैं उसे लाइब्रेरी की बेंच पर पूरी ताकत से चोद रहा था। उसका स्कर्ट ऊपर था, टॉप खुला हुआ, और उसके होंठ मेरे कंधे को चूस रहे थे।

हर ठोके पर उसकी चूत और ज़्यादा भीग रही थी,
“हां… ऐसे ही… चोदते रहो… रुको मत…”

करीब 10 मिनट तक हम लगे रहे — कभी मुँह में चूसी, कभी उसके निप्पल, और हर पोजिशन में मैंने उसे पूरा मजा दिया।

अंत में जब मेरा वीर्य आया, मैंने उसे उसकी चूत में ही छोड़ दिया।

वो थकी हुई, लेकिन मुस्कराते हुए बोली —
“ऐसे प्रोजेक्ट्स मैं हर हफ्ते कर सकती हूँ…”

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